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Thursday, September 24, 2020

Dr. for poor people - No fees /आदिवासियों के मसीहा

Dr. for poor people - No fees

Dr. Ravinder Kohli

Dr.Ravinder Life story.........your sharad ........


Dr.Ravindra Kolhe Ji from Nagpur University, after studying MBBS, worked in the very backward area of ​​Melghat, he realized that the problems and needs of these tribals are different. After this, he went back and got an MD degree and came to Melghat again and started his work among the Korku tribals. He was deeply influenced by Vinoba Bhave's work and ideas from the very beginning.

Dr. Ravindra ji visited the districts of Madhya Pradesh, Maharashtra and Gujarat, found that Gadchiroli area of ​​Maharashtra is suffering from Naxalism, poverty and disease, then he decided to stay in Melghat itself. Seeing the danger of Naxalism, his mother persuaded him not to stay there, but Dr. Ravindra Kolheji had decided that he should remain among these tribals. No one could say that he is an MD doctor, seeing his dress and hulia.

The doctor recalls his old days saying that in those days there were only two health centers in this entire area. I had to walk 40 km daily from Dharani to Bairagarh to reach this clinic. I often saw lions in these forests.

Due to the Tiger Reserve area, no work has been done here, except for the development.

To reach the tribals inside the forest, only jeep has support, which goes on the poor land also. The tribals run their work only by doing the springs of the mountain and little agriculture, there is no irrigation system nor pump nor electricity.

In such an environment, an MD Dr. Ravindra Kolhe has been working wholeheartedly for 24 years like a Karmayogi.


For the first time, when a patient comes, they charge him only two rupees and the next time he comes for treatment, he takes only one rupee. He has opened a small clinic at his own expense and he remains the same.

Even today, his fee is only two rupees. At this time some work has been done there in that area.

Today, the doctors make demands for increase in their salary, and after seeing the blood of patients in the private doctor nursing home and five star hospital, this work of Dr. Kolhe seems like an impossible dream.

Today in this dirty society, killing each other for money and in the glare of the metropolis where thousands of crores of rupees is spent only to show others.

Doctor Ravindra has kept honesty and honesty and hope and trust in the heart among such people. And we think that humanity is still alive. And we get the strength that no matter how bad we are, we have to continue fighting them.

Dr. Ravindra Kolhe ji, repeats this sentence of Ruskin Bond that "If you want to serve human beings in real life, then go and work among the poorest and most neglected people and do not open to any kind of religion. Serve by heart

You will get yourself so good and powerful.
Truly blessed is Dr. Ravindra Kolhe ji.

 Thank you - Dhan Nirankar Ji 
Your Sharad is this side .........Love you all 
🤝be happy make other happy🙏


 ✍️ (your Sharad) .. Dhan Nirankar Ji. 🌈  🌈  🌈 



आदिवासियों के मसीहा 

नागपुर विश्वविद्यालय से रवीन्द्र कोल्हे जी ने एम बी बी एस की पढाई के बाद मेलघाट के अति पिछडे इलाके में नौकरी की तो उन्हें एहसास हुआ कि इन आदिवासियों की परेशानीया और आवश्यकताएं अलग अलग है।  इसके बाद उन्होने वापस जाकर एमडी की डिग्री हासिल की और पुनः मेलघाट आकर कोरकू आदिवासियों के बिच अपना काम करने लगे।  वे शुरु से ही विनोबा भावे के कार्य और विचारों से बेहद प्रभावित थे। 

डाक्टर रविन्द्र जी ने मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात के जिलो का दौरा किया, उन्होने पाया की महाराष्ट्र का गढचिरौली इलाका नक्सलवाद, गरीबी और बीमारी से जूझ रहा है, तब उन्होने मेलघाट में ही रहने का फैसला लिया।   उनकी माँ ने नक्सलवाद के खतरे को देखते हुए उन्हें वहा न रहने के लिए बहुत समझाया लेकिन डाक्टर रविन्द्र कोल्हे जी ठान चुके थे कि उन्हें इन आदिवासियों के बीच ही रहना है।  उनका पहनावा और हुलिया देखकर कोई भी नही कह सकता था कि यह एक एमडी डाक्टर हैं।

डाक्टर अपने पुराने दिनो को याद करते हुए कहते है कि  उन दिनों इस पुरे इलाके में सिर्फ दो स्वास्थ्य केन्द्र थे।   मुझे अपने इस क्लिनिक तक पहुचने के लिए धारणी से बैरागढ तक रोजाना 40 किलोमीटर पैदल चलना पडता था।  मुझे इन जंगलो में अक्सर शेर तो जरुर दिखाई दे जाता था  ।

टाइगर रिजर्व इलाका के कारण से यहाँ किसी प्रकार का कार्य नहीं हुआ है डेवलेपमेन्ट को ले के। 

जंगलो के अन्दर आदिवासियों तक पहुचने के लिए सिर्फ जीप का ही सहारा है जो खराब जमीन पर भी चल जाती हैं।  आदिवासि सिर्फ पहाड़ के झरनो और थोडी थोडी खेती करके ही अपना काम चलाते हैं यहा न सिचाई की व्यवस्था है और न ही पम्प की और न ही बिजली हैं। 

ऐसी माहौल में एक एमडी डाक्टर  रविन्द्र कोल्हे 24 साल से दिल से काम कर रहे हैं एक कर्मयोगी की तरह। 


पहली बार जब कोई रोगी आता है तब वे उससे सिर्फ दो रुपये फीस लेते हैं और अगली बार जब वह आता है इलाज के लिए तो सिर्फ एक रुपया लेते हैं।  अपने खुद के खर्च से उन्होने एक छोटा क्लिनिक खोल रखा है और वे वही रहते भी है। 

आज भी उनकी फीस सिर्फ दो रुपये है इस समय थोड़ा कुछ काम हुआ है वहा पे उस इलाके में। 

आज डाक्टर अपनी तनख्वाह बढाने के लिए मांग करते है हडताल करते है और निजी डाक्टर नर्सिंग होम एवं पांच सितारा अस्पताल में मरीजो का खून चुसते देखकर,  डाक्टर कोल्हे का यह कार्य असम्भव एवं सपने जैसी बात लगती हैं। 

आज इस गन्दे समाज में पैसे के लिए एक दूसरे को मारना और महानगर की चकाचौंध में जहा हजारो लाखो करोडो रुपये सिर्फ दुसरो को दिखाने पे खर्च हो जाता है। 

ऐसे लोगों के बीच डाक्टर रविन्द्र मन में इमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा और आशा - भरोसा,सच्चाई को जिन्दा कर रखा है।  और हमे आपको लगता है की मानवता अभी जिन्दा है।   और हमे बल मिलता हैं कि बुराइया कितनी भी हो, हमे उनसे निरन्तर लडते रहना है। 


डॉक्टर रविन्द्र कोल्हे जी, रस्किन बांण्ड के इस वाक्य को दोहराते हैं कि " यदी आप मानव की सच्ची सेवा करना चाहते हैं, तो जाइये और सबसे गरीब एवं सबसे उपेक्षित लोगों के बीच जाकर काम कीजिये तथा किसी भी तरह  के धर्म जाती से बंधकर नही खुले दिल से सेवा करके देखिए " 

आप को खुद कितना अच्छा और शकुन मिलेगा। 


सचमुच धन्य है डॉक्टर रविन्द्र कोल्हे जी आपको दिल से प्रणाम। 


🙏धन्यवाद 🙏

(आपका शरद) 

🌻 धन निरंकार जी 🌻

🤝Love you all 🤝

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