:-Om Dhan Nirankar Ji :-
I put a few words among you all in the form of a very good story among all of you, if you make any mistake among all of us, you will forgive me.
:- Das salutes all of you at his feet.
✍️ Once Narada ji went to meet Vishnu ji and ask the situation of everyone, as it is the nature of Narada ji.
Then Narada ji noticed one thing that whenever I go from here, the soil of the place where I stand then favors Vishnu ji Khanwa. (clean that stand place after narada gone)
Many times he paid attention to this in the past, but never said anything.
But this time, he asked the revered Vishnu that Lord Vishnu, whenever I go from here, why do you throw the soil of that place by carving it? (why you clean that place where i stand ...Narada asked to Vishnu ji)
Then Vishnu said that because you do not have any guru.
Then Narada ji said that what I need is a Guru, I am knowledgeable myself.
Vishnu ji got angry with this answer of Narada and he cursed Narada that you will continue to wander like many births.
Now Narada ji realized his mistake and he apologized for his mistake to Vishnu ji and Vishnu ji said that this curse will have to be endured.
Now only your Guru can save you from this curse.
Then Narada ji told this to Brahma ji that now how can I find a Guru,
then where did Brahma ji tomorrow morning find the first person who will see you on earth, as his guru.
Then he roamed the earth all night and fell asleep when his eyes opened in the morning, he saw a fishing old man taking a trap and going to the seafarer.
Now Narada ji started thinking that how can he become my master, this fish catcher then remembered the words of Brahma ji and he went to that fishing boatman and told his point but the sailor to become Narada ji's guru. Not getting ready The sailor started saying that you yourself are such a great knowledgeer, what can I teach you?
When Narayan ji pleaded many times, the fish boaters were ready.
Then Narada ji told his guru, who has become a sailor, about his trouble and curse.
Then Narada ji's master said that you should go in front of your Vishnu ji and sent everything to Narada ji to teach and understand that he also told you not to tell all these things to Vishnu that I have said like this.
Then Narayan ji said that right then those Guru ji told Narayan ji who has become his disciple that you will tell Vishnu ji how I will have to suffer the curse, I did not understand, please write it on the ground and explain it.
Then Vishnu wrote the same for all those births and said that in all this you will have to suffer and you will have to come and go in this world, sometimes in the form of animals, sometimes in the form of birds.
Then what was the meaning of Narada ji's master, as immediately Narada ji started to roll over all those words written and when he took all the written words, Narada ji told Vishnu ji, Lord, I was born all my life and enjoyment Take it too, now tell me.
Then Vishnu ji said that it means you have got a guru.
The meaning of this story is that you should be the master of yourself, irrespective of whether you are inspired by any person or a person of a caste, you must make your guru.
Because Guru Bin Sab Shun.(without your godfather/guru/teacher ...life is ZERO)
There is also a Doha written in Hindi in which God himself is saying that Guru is the main one.
Guru govind do khade (Teacher and God stand front of you)
kake lagav pav
Balihari Guru, you told Govind Diyo. (thanks God you are saying that your techaer/Guru is most important)
🙏Om Dhan Nirankar Ji 🙏
Forgive all of you for the mistake 🙏
✍️Your Sharad🤝
:- धन निरंकार जी:-
मै आप का शरद आप सभी के बीच कुछ शब्दों को एक बहुत ही अच्छी कहानी के रूप में आप सभी के बीच में रखता हूँ आप सभी विश्व वासियों के बीच में अगर मुझसे कोई भी गलती हो तो आप सभी माफ करियेगा।
दास आप सभी के चरणों में नमन करता है।
✍️ एक बार नारद जी विष्णु जी से मिलने गये और वहा सबका हाल चाल पूछने और बताने जैसा की नारद जी का स्वभाव है।
तब नारद जी ने एक बात पे ध्यान दिया की जब भी मै यहाँ से जाता हूँ तो जिस जगह मै खड़ा होता हूँ तो उस जगह की मिट्टी को विष्णु जी खनवा के फेक्वा देते हैं।
कई बार उन्होंने पहले भी इस बात पे ध्यान दिया पर कभी कुछ बोला नही।
पर इस बार उन्होंने पूज्य विष्णु जी से पूछ ही लिया की प्रभु विष्णु जी जब भी मै यहाँ से जाता हूँ तो आप उस जगह की मिट्टी को खुदवा के फेक्वा देते हैं ऐसा क्यों?
तब विष्णु जी ने कहा कि क्योकि आप के कोई गुरु नही है इसलिए।
तब नारद जी ने बोला की मुझे गुरु की क्या आवस्यकता है मै तो खुद ही ज्ञानी हूँ।
नारद की इस जवाब से विष्णु जी को गुस्सा आ गया और उन्होंने नारद को श्राप दे दिया की तुम कई जन्मो मे तरह तरह जन्म लेके भटकते रहोगे।
अब नारद जी को अपनी गलती का अहसास हो गया और उन्होंने अपने गलती की माफी माँगी विष्णु जी से तो विष्णु जी ने बोला यह श्राप तो भोगना ही पड़ेगा।
अब इस से तुम्हारे गुरु ही तुम्हें बचा सकते है इस श्राप से।
तब नारद जी ने यह बात जाके ब्रम्हा जी से बताई की अब मै गुरु कैसे खोजु तब ब्रह्मा जी ने कहाँ कल सुबह पृथ्वी पे जो तुमको पहला व्यक्ति दिखेगा उसी को अपना गुरु बना लेना ।
तब रात भर पृथ्वी पे घूमते रहे और सो गए जब सुबह उनकी आँख खुली तो उन्होंने देखा की एक मछली पकड़ने वाला बुजुर्ग जाल ले के मल्लाह जा रहा है।
अब नारद जी सोचने लगे की ये मेरा गुरु कैसे बन सकता हैं ये मछली पकड़ने वाला फिर उनको ब्रह्म जी की कही बात याद आ गयी और वो चले गए उस मछली पकड़ने वाले मल्लाह के पास और अपनी बात बताई पर मल्लाह नारद जी का गुरु बनने को तैयार ही नहीं हो रहे । वो मल्लाह कहने लगा आप खुद इतने बड़े ज्ञानी है मै आप को क्या बता सिखा सकता हूँ।
तब नारायण जी के कई बार बिनती करने पर वो मछली पकडने वाले मल्लाह तैयार हो गए।
तब नारद जी ने अपने गुरु जो की मल्लाह बन चुके हैं उनको अपनी परेशानी और श्राप के बारे में बताया।
तब नारद जी के गुरु ने कहा आप जाए अपने विष्णु जी के सामने और और सब कुछ नारद जी को सिखा के व समझा के भेज दिया उनसे ये भी कहा कि आप ये सब बाते विष्णु जी को मत बताएं की मैने ऐसे ऐसे कहा है।
तब नारायण जी ने बोला ठीक है तब उन गुरु जी ने अपने शिष्य बन चुके नारायण जी को बताया कि आप विष्णु जी से कहियेगा की श्राप को मुझे कैसे कैसे भोगना पड़ेगा मुझे समझ में नही आया कृपया इसे जमीं पे लिख के समझा और बता दीजिये।
तब विष्णु जी ने उन सारी जन्मो को वही लिख दिया और कहा की ये सब मे तुमको भोगना पड़ेगा और तुम्हे आना जाना पड़ेगा ईस संसार में कभी पशु कभी पछी रुप में ।
फिर क्या था नारद जी के गुरु ने जैसा समझाया था तुरंत नारद जी उन सब लिखे हुवे शब्दों पे लोटना शुरू कर दिया और जब सारे लिखे हुए शब्दों पे लोट लिए तब नारद जी ने विष्णु जी से कहा प्रभु मै सब जन्म घूम भी लिया और भोग भी लिया अब बताये।
तब विष्णु जी ने कहा इसका मतलब आप को गुरु मिल गए हैं।
इस कहानी का अर्थ यह हैं कि गुरु आप का होना ही चाहिए चाहे आप किसी भी व्यक्ति विशेष या जाती के मनुष्य से प्रेरित हो आप अपना गुरु अवश्य बनाये
क्योंकि गुरु बिन सब शुन ।
इस पर हिन्दी में लिखा एक दोहा भी है जिसमें ईश्वर खुद कह रहे हैं कि गुरु ही मुख्य हैं ।
गुरु गोविन्द दोउ खडे काके लागव पाव
बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो बताये।
धन निरंकार जी
गलती के लिए छमा करे आप सभी
आप का शरद
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